सासोंका महाविज्ञान स्वर विज्ञान
– शिवस्वरोदय विज्ञान भारत की अत्यत प्राचीन विद्या है।
– इस विद्या के द्वारा शारीरिक, मानसिक, सांसारिक, और आर्थिक कार्यों की सफलता हम प्राप्त कर सकते हैं।
– इस विद्या के अनुसार, किसी कार्य के शुभारंभ का मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।
– स्वर विज्ञान के ग्रंथों में स्वरविज्ञान से निकाले गए मुहूर्तों का वर्णन है, जो हमारे निर्णय को सफल बनाते हैं।
नासिका द्वारा सास के अंदर जाने व बाहर आने के समय वाफ थंडी या गरम आती है, जिसे हम स्वर कहते हैं। यह स्वर तीन प्रकार के होते हैं:
1. पहला सूर्यस्वर: दायी नाडी सक्रिय होती है, और इसे सुर्यनाडी से जाना जाता है।
2. दूसरा चंद्रस्वर: बायी नाडी सक्रिय होती है, और इसे चंद्रनाडी से जाना जाता है।
3. तीसरा सुषुम्ना स्वर: दोनों नाड़ियाँ एक साथ सक्रिय रहती हैं।
दाहिनी नासिका के सक्रिय स्वर को पिंगला कहते हैं और बायीं के सक्रिय स्वर को इडा कहते हैं। जब सूर्यस्वर चल रहा हो, तो शरीर में गरमी ज्यादा होती है, और जब चंद्रस्वर चल रहा हो, तो शरीर को ठंडक मिलती है, किन्तु जब दोनों स्वर एक साथ चल रहे हों, तब शरीर गर्मी और ठंडक के सतुलन में रहता है।
इस विद्या को सीखने के लिए नियमित प्राणायाम, ध्यान, और गुरु का सही मार्गदर्शन आवश्यक है। प्राणायाम के अनुसार, इडा और पिंगला के साथ चलने से और नाडीशोधन, अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने से साधक को किसी भी प्रकार की हानि का भय नहीं होता, और वह विशेष लाभ और सिद्धि प्राप्त करता है।प्राणायाम के पूर्व साधक योगासन और योगिंग करते हैं, जिससे उनके दोनों स्वर एक साथ चलने लगते हैं। इससे स्वर संतुलित रहता है, और शरीर में गर्मी और ठंडक का संतुलन बना रहता है।यदि साधक को शरीर में थंडायी की आवश्यकता है तो वे चंद्रनाडी से ज्यादा से ज्यादा श्वास लें मगर उस समय दाहीना नथुना बंद चाहीये। और गर्मी चाहिए तो बायां नथुना बंद करें या जिस स्वर को चलाना चाहते है, उसके विपरीत नासिका द्वार में रुई लगा दें, तो कुछ देर में वह स्वर चलने लगता है या अगर आप दाहिना स्वर चलाना चाहते हैं, तो फिर कुछ देर तक बायीं करवट लेट जाना है। इसी तरह यदि बाया स्वर चलाना चाहते तो कुछ देर तक दाहिनी करवट लेट जाना है।